Chaupai Sahib Path in English - Latest Download

Chaupai Sahib Path in English

Chaupai Sahib Path in English PDF download link is given at the bottom of this article. You can direct download PDF of Chaupai Sahib Path in English for free using the download button.

Dear readers, here we are offering Chaupai Sahib Path in English PDF to all of you.


Chaupai Sahib Path in English PDF Download

Chaupai Sahib Path in English - Latest Download

Click Here




    Chaupai Sahib Path in English PDF Summary

    Dear readers, we present to you the Chaupai Sahib Path in English PDF. Kaviyo Bach Benti Chaupai (otherwise called Chaupai Sahib) is a psalm by Master Gobind Singh. Benti Chaupai illustrates the struggle of a goddess who was born as a result of the first battle and her quest for the acceptance of the Supreme Being, her renouncing all other worldly desires, in the Chaupai Sahib, which begins after 404 Chittar. The Chaupai Sahib consists of three parts: Kabio Bach Benti Chaupai, Aril, Chaupai, Savaye and Dohra. Chaupai is a common abbreviation for kabio bach benti chaupai. A component of the Sikh Nitnem, or daily scripture reading, Chaupai is the 404th Charit of the Charitropakhyan of the Dasam Granth.

    Chaupai Sahib Path in English PDF

    कबयो बाच बेनती ॥

    चौपई ॥

    हमरी करो हाथ दै रछा ॥

    पूरन होइ चि्त की इछा ॥

    तव चरनन मन रहै हमारा ॥

    अपना जान करो प्रतिपारा ॥३७७॥

    हमरे दुशट सभै तुम घावहु ॥

    आपु हाथ दै मोहि बचावहु ॥

    सुखी बसै मोरो परिवारा ॥

    सेवक सि्खय सभै करतारा ॥३७८॥

    मो रछा निजु कर दै करियै ॥

    सभ बैरिन कौ आज संघरियै ॥

    पूरन होइ हमारी आसा ॥

    तोरि भजन की रहै पियासा ॥३७९॥

    तुमहि छाडि कोई अवर न धयाऊं ॥

    जो बर चहों सु तुमते पाऊं ॥

    सेवक सि्खय हमारे तारियहि ॥

    चुन चुन श्त्रु हमारे मारियहि ॥३८०॥

    आपु हाथ दै मुझै उबरियै ॥

    मरन काल त्रास निवरियै ॥

    हूजो सदा हमारे प्छा ॥

    स्री असिधुज जू करियहुछा ॥३८१॥

    राखि लेहु मुहि राखनहारे ॥

    साहिब संत सहाइ पियारे ॥

    दीनबंधु दुशटन के हंता ॥

    तुमहो पुरी चतुरदस कंता ॥३८२॥

    काल पाइ ब्रहमा बपु धरा ॥

    काल पाइ शिवजू अवतरा ॥

    काल पाइ करि बिशन प्रकाशा ॥

    सकल काल का कीया तमाशा ॥३८३॥

    जवन काल जोगी शिव कीयो ॥

    बेद राज ब्रहमा जू थीयो ॥

    जवन काल सभ लोक सवारा ॥

    नमशकार है ताहि हमारा ॥३८४॥

    जवन काल सभ जगत बनायो ॥

    देव दैत ज्छन उपजायो ॥

    आदि अंति एकै अवतारा ॥

    सोई गुरू समझियहु हमारा ॥३८५॥

    नमशकार तिस ही को हमारी ॥

    सकल प्रजा जिन आप सवारी ॥

    सिवकन को सवगुन सुख दीयो ॥

    श्त्रुन को पल मो बध कीयो ॥३८६॥

    घट घट के अंतर की जानत ॥

    भले बुरे की पीर पछानत ॥

    चीटी ते कुंचर असथूला ॥

    सभ पर क्रिपा द्रिशटि करि फूला ॥३८७॥

    संतन दुख पाए ते दुखी ॥

    सुख पाए साधन के सुखी ॥

    एक एक की पीर पछानै ॥

    घट घट के पट पट की जानै ॥३८८॥

    जब उदकरख करा करतारा ॥

    प्रजा धरत तब देह अपारा ॥

    जब आकरख करत हो कबहूं ॥

    तुम मै मिलत देह धर सभहूं ॥३८९॥

    जेते बदन स्रिशटि सभ धारै ॥

    आपु आपुनी बूझि उचारै ॥

    तुम सभ ही ते रहत निरालम ॥

    जानत बेद भेद अरु आलम ॥३९०॥

    निरंकार न्रिबिकार न्रिल्मभ ॥

    आदि अनील अनादि अस्मभ ॥

    ताका मूड़्ह उचारत भेदा ॥

    जाको भेव न पावत बेदा ॥३९१॥

    ताकौ करि पाहन अनुमानत ॥

    महां मूड़्ह कछु भेद न जानत ॥

    महांदेव कौ कहत सदा शिव ॥

    निरंकार का चीनत नहि भिव ॥३९२॥

    आपु आपुनी बुधि है जेती ॥

    बरनत भिंन भिंन तुहि तेती ॥

    तुमरा लखा न जाइ पसारा ॥

    किह बिधि सजा प्रथम संसारा ॥३९३॥

    एकै रूप अनूप सरूपा ॥

    रंक भयो राव कहीं भूपा ॥

    अंडज जेरज सेतज कीनी ॥

    उतभुज खानि बहुरि रचि दीनी ॥३९४॥

    कहूं फूलि राजा ह्वै बैठा ॥

    कहूं सिमटि भयो शंकर इकैठा ॥

    सगरी स्रिशटि दिखाइ अच्मभव ॥

    आदि जुगादि सरूप सुय्मभव ॥३९५॥

    अब ्रछा मेरी तुम करो ॥

    सि्खय उबारि असि्खय स्घरो ॥

    दुशट जिते उठवत उतपाता ॥

    सकल मलेछ करो रण घाता ॥३९६॥

    जे असिधुज तव शरनी परे ॥

    तिन के दुशट दुखित ह्वै मरे ॥

    पुरख जवन पगु परे तिहारे ॥

    तिन के तुम संकट सभ टारे ॥३९७॥

    जो कलि कौ इक बार धिऐहै ॥

    ता के काल निकटि नहि ऐहै ॥

    ्रछा होइ ताहि सभ काला ॥

    दुशट अरिशट टरे ततकाला ॥३९८॥

    क्रिपा द्रिशाटि तन जाहि निहरिहो ॥

    ताके ताप तनक महि हरिहो ॥

    रि्धि सि्धि घर मों सभ होई ॥

    दुशट छाह छ्वै सकै न कोई ॥३९९॥

    एक बार जिन तुमैं स्मभारा ॥

    काल फास ते ताहि उबारा ॥

    जिन नर नाम तिहारो कहा ॥

    दारिद दुशट दोख ते रहा ॥४००॥

    खड़ग केत मैं शरनि तिहारी ॥

    आप हाथ दै लेहु उबारी ॥

    सरब ठौर मो होहु सहाई ॥

    दुशट दोख ते लेहु बचाई ॥४०१॥

    क्रिपा करी हम पर जगमाता ॥

    ग्रंथ करा पूरन सुभ राता ॥

    किलबिख सकल देह को हरता ॥

    दुशट दोखियन को छै करता ॥४०२॥

    स्री असिधुज जब भए दयाला ॥

    पूरन करा ग्रंथ ततकाला ॥

    मन बांछत फल पावै सोई ॥

    दूख न तिसै बिआपत कोई ॥४०३॥

    अड़ि्ल ॥

    सुनै गुंग जो याहि सु रसना पावई ॥

    सुनै मूड़्ह चित लाइ चतुरता आवई ॥

    दूख दरद भौ निकट न तिन नर के रहै ॥

    हो जो याकी एक बार चौपई को कहै ॥४०४॥

    चौपई ॥

    स्मबत स्त्रह सहस भणि्जै ॥

    अरध सहस फुनि तीनि कहि्जै ॥

    भाद्रव सुदी अशटमी रवि वारा ॥

    तीर सतु्द्रव ग्रंथ सुधारा ॥४०५॥

    इति स्री चरित्र पख्याने त्रिया चरित्रे मंत्री भूप स्मबादे चार सौ चार चरित्र समापतम सतु सुभम सतु ॥४०३॥७१३४॥ अफजूं ॥

    Chaupai Sahib in Punjabi

    ਕਬ੍ਯੋ ਬਾਚ ਬੇਨਤੀ ॥

    ਚੌਪਈ ॥

    ਹਮਰੀ ਕਰੋ ਹਾਥ ਦੈ ਰਛਾ ॥

    ਪੂਰਨ ਹੋਇ ਚਿਤ ਕੀ ਇਛਾ ॥

    ਤਵ ਚਰਨਨ ਮਨ ਰਹੈ ਹਮਾਰਾ ॥

    ਅਪਨਾ ਜਾਨ ਕਰੋ ਪ੍ਰਤਿਪਾਰਾ ॥੩੭੭॥

    ਹਮਰੇ ਦੁਸਟ ਸਭੈ ਤੁਮ ਘਾਵਹੁ ॥

    ਆਪੁ ਹਾਥ ਦੈ ਮੋਹਿ ਬਚਾਵਹੁ ॥

    ਸੁਖੀ ਬਸੈ ਮੋਰੋ ਪਰਿਵਾਰਾ ॥

    ਸੇਵਕ ਸਿਖ੍ਯ ਸਭੈ ਕਰਤਾਰਾ ॥੩੭੮॥

    ਮੋ ਰਛਾ ਨਿਜੁ ਕਰ ਦੈ ਕਰਿਯੈ ॥

    ਸਭ ਬੈਰਿਨ ਕੌ ਆਜ ਸੰਘਰਿਯੈ ॥

    ਪੂਰਨ ਹੋਇ ਹਮਾਰੀ ਆਸਾ ॥

    ਤੋਰਿ ਭਜਨ ਕੀ ਰਹੈ ਪਿਯਾਸਾ ॥੩੭੯॥

    ਤੁਮਹਿ ਛਾਡਿ ਕੋਈ ਅਵਰ ਨ ਧ੍ਯਾਊ ॥

    ਜੋ ਬਰ ਚਾਹੌ ਸੁ ਤੁਮ ਤੇ ਪਾਊ ॥

    ਸੇਵਕ ਸਿਖ੍ਯ ਹਮਾਰੇ ਤਾਰਿਯਹਿ ॥

    ਚੁਨ ਚੁਨ ਸਤ੍ਰੁ ਹਮਾਰੇ ਮਾਰਿਯਹਿ ॥੩੮੦॥

    ਆਪੁ ਹਾਥ ਦੈ ਮੁਝੈ ਉਬਰਿਯੈ ॥

    ਮਰਨ ਕਾਲ ਕਾ ਤ੍ਰਾਸ ਨਿਵਰਿਯੈ ॥

    ਹੂਜੋ ਸਦਾ ਹਮਾਰੇ ਪਛਾ ॥

    ਸ੍ਰੀ ਅਸਿਧੁਜ ਜੂ ਕਰਿਯਹੁ ਰਛਾ ॥੩੮੧॥

    ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਮੁਹਿ ਰਾਖਨਹਾਰੇ ॥

    ਸਾਹਿਬ ਸੰਤ ਸਹਾਇ ਪਿਯਾਰੇ ॥

    ਦੀਨਬੰਧੁ ਦੁਸਟਨ ਕੇ ਹੰਤਾ ॥

    ਤੁਮ ਹੋ ਪੁਰੀ ਚਤੁਰਦਸ ਕੰਤਾ ॥੩੮੨॥

    ਕਾਲ ਪਾਇ ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਪੁ ਧਰਾ ॥

    ਕਾਲ ਪਾਇ ਸਿਵ ਜੂ ਅਵਤਰਾ ॥

    ਕਾਲ ਪਾਇ ਕਰਿ ਬਿਸਨ ਪ੍ਰਕਾਸਾ ॥

    ਸਕਲ ਕਾਲ ਕਾ ਕੀਯਾ ਤਮਾਸਾ ॥੩੮੩॥

    ਜਵਨ ਕਾਲ ਜੋਗੀ ਸਿਵ ਕੀਯੋ ॥

    ਬੇਦ ਰਾਜ ਬ੍ਰਹਮਾ ਜੂ ਥੀਯੋ ॥

    ਜਵਨ ਕਾਲ ਸਭ ਲੋਕ ਸਵਾਰਾ ॥

    ਨਮਸਕਾਰ ਹੈ ਤਾਹਿ ਹਮਾਰਾ ॥੩੮੪॥

    ਜਵਨ ਕਾਲ ਸਭ ਜਗਤ ਬਨਾਯੋ ॥

    ਦੇਵ ਦੈਤ ਜਛਨ ਉਪਜਾਯੋ ॥

    ਆਦਿ ਅੰਤਿ ਏਕੈ ਅਵਤਾਰਾ ॥

    ਸੋਈ ਗੁਰੂ ਸਮਝਿਯਹੁ ਹਮਾਰਾ ॥੩੮੫॥

    ਨਮਸਕਾਰ ਤਿਸ ਹੀ ਕੋ ਹਮਾਰੀ ॥

    ਸਕਲ ਪ੍ਰਜਾ ਜਿਨ ਆਪ ਸਵਾਰੀ ॥

    ਸਿਵਕਨ ਕੋ ਸਿਵਗੁਨ ਸੁਖ ਦੀਯੋ ॥

    ਸਤ੍ਰੁਨ ਕੋ ਪਲ ਮੋ ਬਧ ਕੀਯੋ ॥੩੮੬॥

    ਘਟ ਘਟ ਕੇ ਅੰਤਰ ਕੀ ਜਾਨਤ ॥

    ਭਲੇ ਬੁਰੇ ਕੀ ਪੀਰ ਪਛਾਨਤ ॥

    ਚੀਟੀ ਤੇ ਕੁੰਚਰ ਅਸਥੂਲਾ ॥

    ਸਭ ਪਰ ਕ੍ਰਿਪਾ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਕਰਿ ਫੂਲਾ ॥੩੮੭॥

    ਸੰਤਨ ਦੁਖ ਪਾਏ ਤੇ ਦੁਖੀ ॥

    ਸੁਖ ਪਾਏ ਸਾਧਨ ਕੇ ਸੁਖੀ ॥

    ਏਕ ਏਕ ਕੀ ਪੀਰ ਪਛਾਨੈ ॥

    ਘਟ ਘਟ ਕੇ ਪਟ ਪਟ ਕੀ ਜਾਨੈ ॥੩੮੮॥

    ਜਬ ਉਦਕਰਖ ਕਰਾ ਕਰਤਾਰਾ ॥

    ਪ੍ਰਜਾ ਧਰਤ ਤਬ ਦੇਹ ਅਪਾਰਾ ॥

    ਜਬ ਆਕਰਖ ਕਰਤ ਹੋ ਕਬਹੂੰ ॥

    ਤੁਮ ਮੈ ਮਿਲਤ ਦੇਹ ਧਰ ਸਭਹੂੰ ॥੩੮੯॥

    ਜੇਤੇ ਬਦਨ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸਭ ਧਾਰੈ ॥

    ਆਪੁ ਆਪੁਨੀ ਬੂਝਿ ਉਚਾਰੈ ॥

    ਤੁਮ ਸਭ ਹੀ ਤੇ ਰਹਤ ਨਿਰਾਲਮ ॥

    ਜਾਨਤ ਬੇਦ ਭੇਦ ਅਰੁ ਆਲਮ ॥੩੯੦॥

    ਨਿਰੰਕਾਰ ਨ੍ਰਿਬਿਕਾਰ ਨ੍ਰਿਲੰਭ ॥

    ਆਦਿ ਅਨੀਲ ਅਨਾਦਿ ਅਸੰਭ ॥

    ਤਾ ਕਾ ਮੂੜ ਉਚਾਰਤ ਭੇਦਾ ॥

    ਜਾ ਕੋ ਭੇਵ ਨ ਪਾਵਤ ਬੇਦਾ ॥੩੯੧॥

    ਤਾ ਕੌ ਕਰਿ ਪਾਹਨ ਅਨੁਮਾਨਤ ॥

    ਮਹਾ ਮੂੜ ਕਛੁ ਭੇਦ ਨ ਜਾਨਤ ॥

    ਮਹਾਦੇਵ ਕੌ ਕਹਤ ਸਦਾ ਸਿਵ ॥

    ਨਿਰੰਕਾਰ ਕਾ ਚੀਨਤ ਨਹਿ ਭਿਵ ॥੩੯੨॥

    ਆਪੁ ਆਪੁਨੀ ਬੁਧਿ ਹੈ ਜੇਤੀ ॥

    ਬਰਨਤ ਭਿੰਨ ਭਿੰਨ ਤੁਹਿ ਤੇਤੀ ॥

    ਤੁਮਰਾ ਲਖਾ ਨ ਜਾਇ ਪਸਾਰਾ ॥

    ਕਿਹ ਬਿਧਿ ਸਜਾ ਪ੍ਰਥਮ ਸੰਸਾਰਾ ॥੩੯੩॥

    ਏਕੈ ਰੂਪ ਅਨੂਪ ਸਰੂਪਾ ॥

    ਰੰਕ ਭਯੋ ਰਾਵ ਕਹੀ ਭੂਪਾ ॥

    ਅੰਡਜ ਜੇਰਜ ਸੇਤਜ ਕੀਨੀ ॥

    ਉਤਭੁਜ ਖਾਨਿ ਬਹੁਰਿ ਰਚਿ ਦੀਨੀ ॥੩੯੪॥

    ਕਹੂੰ ਫੂਲਿ ਰਾਜਾ ਹ੍ਵੈ ਬੈਠਾ ॥

    ਕਹੂੰ ਸਿਮਟਿ ਭਯੋ ਸੰਕਰ ਇਕੈਠਾ ॥

    ਸਗਰੀ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਦਿਖਾਇ ਅਚੰਭਵ ॥

    ਆਦਿ ਜੁਗਾਦਿ ਸਰੂਪ ਸੁਯੰਭਵ ॥੩੯੫॥

    ਅਬ ਰਛਾ ਮੇਰੀ ਤੁਮ ਕਰੋ ॥

    ਸਿਖ੍ਯ ਉਬਾਰਿ ਅਸਿਖ੍ਯ ਸੰਘਰੋ ॥

    ਦੁਸਟ ਜਿਤੇ ਉਠਵਤ ਉਤਪਾਤਾ ॥

    ਸਕਲ ਮਲੇਛ ਕਰੋ ਰਣ ਘਾਤਾ ॥੩੯੬॥

    ਜੇ ਅਸਿਧੁਜ ਤਵ ਸਰਨੀ ਪਰੇ ॥

    ਤਿਨ ਕੇ ਦੁਸਟ ਦੁਖਿਤ ਹ੍ਵੈ ਮਰੇ ॥

    ਪੁਰਖ ਜਵਨ ਪਗੁ ਪਰੇ ਤਿਹਾਰੇ ॥

    ਤਿਨ ਕੇ ਤੁਮ ਸੰਕਟ ਸਭ ਟਾਰੇ ॥੩੯੭॥

    ਜੋ ਕਲਿ ਕੌ ਇਕ ਬਾਰ ਧਿਐਹੈ ॥

    ਤਾ ਕੇ ਕਾਲ ਨਿਕਟਿ ਨਹਿ ਐਹੈ ॥

    ਰਛਾ ਹੋਇ ਤਾਹਿ ਸਭ ਕਾਲਾ ॥

    ਦੁਸਟ ਅਰਿਸਟ ਟਰੈਂ ਤਤਕਾਲਾ ॥੩੯੮॥

    ਕ੍ਰਿਪਾ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਤਨ ਜਾਹਿ ਨਿਹਰਿਹੋ ॥

    ਤਾ ਕੇ ਤਾਪ ਤਨਕ ਮਹਿ ਹਰਿਹੋ ॥

    ਰਿਧਿ ਸਿਧਿ ਘਰ ਮੋ ਸਭ ਹੋਈ ॥

    ਦੁਸਟ ਛਾਹ ਛ੍ਵੈ ਸਕੈ ਨ ਕੋਈ ॥੩੯੯॥

    ਏਕ ਬਾਰ ਜਿਨ ਤੁਮੈ ਸੰਭਾਰਾ ॥

    ਕਾਲ ਫਾਸ ਤੇ ਤਾਹਿ ਉਬਾਰਾ ॥

    ਜਿਨ ਨਰ ਨਾਮ ਤਿਹਾਰੋ ਕਹਾ ॥

    ਦਾਰਿਦ ਦੁਸਟ ਦੋਖ ਤੇ ਰਹਾ ॥੪੦੦॥

    ਖੜਗਕੇਤੁ ਮੈ ਸਰਨਿ ਤਿਹਾਰੀ ॥

    ਆਪੁ ਹਾਥ ਦੈ ਲੇਹੁ ਉਬਾਰੀ ॥

    ਸਰਬ ਠੌਰ ਮੋ ਹੋਹੁ ਸਹਾਈ ॥

    ਦੁਸਟ ਦੋਖ ਤੇ ਲੇਹੁ ਬਚਾਈ ॥੪੦੧॥


    Chaupai Sahib in English

    hamri kro hath dai rchcha.

    pooran hoeh chit ki eichcha.

    tav charnan mun rehai hmara.

    apna jan kro pritipara. (1)

    hamrai dust sabhai tum ghao

    aapu hath dai moeh bachavo;

    sukhi basaimoro privara

    saivak sikh sbhai kartara. (2)

    mo rchcha nij kr dai kriye.

    sabh bairn ko aij sunghriye.

    pooran hoeh hmari aasa.

    tor bhjan ki rehai piaasa. (3)

    tumeh chadi koei avr na dhiyaoun

    jo bar chon so tum tai paoon.

    saivk sikh hmarai tariaeh

    chuni chuni strhmarai mariaeh. (4)

    aap hath dai mujhai obriyai

    mrn kal ka tras nivriaye.

    hoojo sda hamaraipchcha

    sri asidhuj joo kriyo rchcha. (5)

    rakh laiho mohe rakhan harai

    sahib sant shaeh piyarai

    deen bundhu dustan kai hunta

    tum ho puri chtur dus kunta. (6)

    kal paeh brhma bup dhra.

    kal paeh siv joo avtra.

    kal paeh kr bisnu prkasa

    skl kal ka kia tmasa. (7)

    jvan kal jogi siv kio

    baid raj brahma joo thio

    jvn kal sabh lok svara

    nmskar hai taeh hmara. (8)

    jvn kal sabh jagat bnaio

    dev daint jchchan oopjaio

    adi aunti aikai avtara

    soei guru smjhiayho hmara (9)

    nmskar tis hi ko hamari

    skal prja jin aap svari

    sivkn ko siv gun sukh dio

    sttrun ko pul mo bdh kio. (10)

    ghat ghat kai antar ki jant

    bhlai burai ki pir pachant

    chiti tai kunchrasthoola

    sabh par kirpa diristi kar phoola. (11)

    suntun dukh paai tai dukhi

    sukh paai sadhun kai sukhi

    aik aik ki pir pchanain

    ghat ghat kai put put ki janai. (12)

    jub oodkrkh kra kartara

    prja dhrt tab dai apara

    jub aakrkh kart ho kabhoon

    tum mai milat dai dhr sbhhoon (13)

    jaitai bdan sirsti sbh dharai

    aap aapni boojh oocharai

    tum sabh hi tai reht niralm

    jant baid bhaid ar aalm (14)

    nirankar niribkar nirlunbh

    adi anil anadi asunbh

    ta ka moorh oocharut bhaida

    ja ko bhaiv na pavat baida. (15)

    ta ko kar pahn anumant

    maha moorh kcho bhaid na jant

    mahadaiv ko keht sda siv

    nirankar ka chint neh bhiv. (16)

    aap aapni budhi hai jaiti

    barnt bhinun bhinun tuhe taiti

    tumra lkha na jaeh psara

    keh bidhi sja prthm sunsara. (17)

    aikai roop anoop sroopa

    runk bhyo rav kehi bhoopa

    andj jairj saitj kini

    ootbhuj khani bhor rchi deeni (18)

    kahoon phool raja hvai baitha

    kahoon simit bhio sunkr aikaitha

    sgri sirsti dikhaeh achunbhv

    adi jugadi sroop suyunbhv. (19)

    ab rchcha mairi tum kro

    sikh oobari asikh soghro

    dust jitai oothvat ootpata

    skal mlaich kro run ghata. (20)

    jai asidhuj tav sarni parai

    tin kai dusht dukhit hvai mrai

    purkh jvan pug parai tiharai

    tin kai tum sunkt sabh tarai. (21)

    jo kal ko eik bar dhiaai hai

    ta kai kal nikti neh aai hai

    rchcha hoeh taeh sabh kala

    dust arist train tatkala. (22)

    kirpa diristi tun jaeh nihriho

    ta kai tap tnak mo herho.

    ridhdhi sidhdhi ghar mo sabh hoei

    dust chah chvai skai na koei. (23)

    aik bar jin tumai sunbhara

    kal phas tai taeh oobara

    jin nar nam tiharo kaha

    darid dust dokh tai raha. (24)

    kharag kait mai sarni tehari

    aap hath dai laio oobari

    sarb thor mo hohu sahaei

    dust dokh tai laiho bchaei. (25)

    Kripaa kari ham par jagmaataa||

    Granth karaa pooran subh raataa||

    Kilbikh sakal deh ko hartaa||

    Dusht dokhiyan ko chhai kartaa ||26||

    Sri asidhuj jab bhae dayaalaa||

    Pooran karaa granth tatkaalaa||

    Man baanchhat phal paavai soee||

    Dookh na tisai biaapat koee||27||

    Arhil

    Sunai gung jo yaahe su rasnaa paavaee||

    Sunai moorh chit laae chaturtaa aavaee||

    Dookh dard bhau nikath na tin nar ke rahai||

    Ho jo yaaki ek baar chaupai ko kahai||28||

    Chaoupai

    Sanbhat satrah sahas bhanijai||

    Aradh sahas phun teen kahijai||

    Bhaadrav sudi ashtami ravi vaaraa||

    Teer satuddrav granth sudhaaraa||29||

    Swaiyaa

    Paahe gahe jab te tumre tab te kou aankh tare nahi aanyo||

    Raam Raheem Puraan Kuraan aneyk kahai mat eyk na maanyo||

    Sinmrit Shaastra Bed sabhai bahu bhed kahai ham ek naa jaanyo||

    Sri asipaan kripaa tumri kar mai na kahyo sabh tohe bakhaanyo||863||

    Dohraa

    Sagal duaar kau chhaad kai gahyo tuhaaro duaar||

    Bahe gahe ki laaj as Gobind daas tuhaar||864||

    Chaupai Sahib Path in English - Latest Download

    Post a Comment

    0 Comments
    * Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.