Surah Fajr PDF in Hindi - Latest Download

Surah Fajr PDF in Hindi

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Surah Fajr Hindi PDF Download

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    Surah Fajr Hindi PDF Summary

    Dear readers, here we are offering all of you Surah Fajr PDF in Hindi. The name of the surah is already quoted from the sentence “I swear by al-Faz (the dawn)”. Its theme is the affirmation of retribution and punishment in the Hereafter, which the Meccans were denying. For this purpose, after swearing by ‘Ushakal’ and ten nights and couple and couple and farewell night, the audience has been asked whether these things testify to the truth of what you are denying. Not enough?

    It is evident from its talks that it was incarnated when the mill of oppression started running against those who accepted Islam in Mecca Muazzama. That is why the people of Mecca have been warned about the consequences of Aad and Thamud and Pharaoh. After this, evidence from human history is presented, for example, Ad and Thamud, and the result of Pharaoh is brought forth that when they crossed the limit, the whip of divine punishment rained on them.

    सूरह फज्र तर्जुमे के साथ / Surah Fajr Ka Tarjuma

    बिस्मिल्लाहिररहमानिररहीम
    शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा महेरबान निहायत रहम वाला है।

    वल फज्रि
    क़सम है फ़ज्र के वक़्त की,

    व लयालिन अशर
    और दस रातों की

    वश शफ़ इ वल वत्र
    और जुफ्त औत ताक़ की

    वल लैलि इज़ा यस्र
    और रात की जब वो जाने लगे

    हल फ़ी ज़ालिका क़-समुल लिजी हिज्र
    एक अक्ल वाले को ( यक़ीन दिलाने ) के लिए ये क़स्में काफ़ी नहीं है ( कि वो यक़ीन कर लें कि क़यामत ज़रूर आएगी )

    अलम तरा कैफ़ा फ़-अला रब्बुका बिआद
    क्या तुम ने देखा नहीं कि तुम्हारे परवरदिगार ने कौमे आद के साथ क्या सुलूक किया

    वला तहाददूना अला तआमिल मिस्कीन
    और मिस्कीन को खाना खिलाने पर एक दुसरे को आमादा नहीं करते

    वतअ’ कुलूनत तुरास अक लल लममा
    और मीरास का सारा माल समेट कर खा जाते हो

    वतुहिब बूनल मा-ल हुब्बन जममा
    और माल से बेहद मुहब्बत रखते हो

    कल्ला इज़ा दुक्कतिल अरदु दक्कन दक्का
    हरगिज़ ऐसा नहीं होना चाहिए, जब ज़मीन कूट कूट कर रेज़ा रेज़ा कर दी जाएगी

    व जाअ रब्बुका वल म-लकु सफ्फन सफ्फा
    और तुम्हारा परवरदिगार और क़तार बांधे हुए फ़रिश्ते (मैदाने हश्र में) आयेंगे

    वजीअ यौमइज़िम बि जहन्नम, यौ मइजिय यता ज़क्करुल इंसानु व अन्ना लहुज़ ज़िकरा
    उस दिन जहन्नम को सामने लाया जायेगा, उस दिन इंसान समझ जायेगा, (लेकिन) अब समझने का क्या फ़ायदा

    यक़ूलु या लैतनी क़द दम्तु लि हयाती
    वो कहेगा कि : काश ! मैंने अपनी इस ज़िन्दगी के लिए कुछ आगे भेज दिया होता

    फ़यौ मइज़िल ला युअज्ज़िबू अज़ाबहू अहद
    उस दिन अल्लाह जो अज़ाब देगा, उस जैसा अज़ाब देने वाला कोई नहीं

    वला यूसिकु वसा क़हू अहद
    और जैसे अल्लाह जकड़ेगा उस जैसा जकड़ने वाला कोई नहीं

    या अय्यतुहन नफ्सुल मुत मइन्नह
    (नेक लोगों से कहा जायेगा) ए वो जान जो (अल्लाह की इताअत में) चैन पा चुकी है

    इरजिई इला रब्बिकि रादियतम मर दिय्यह
    अपने परवरदिगार की तरफ़ इस तरह लौट जा कि तू उस से ख़ुश हो और वो तुझ से

    फ़दखुली फ़ी इबादी
    और शामिल हो जा मेरे (कामयाब) बन्दों में

    वद खुली जन्नती
    और दाख़िल हो जा मेरी जन्नत में

    सूरह अल-फज्र अरबी में | Surah Fajr In Arabic

    بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ


    1. وَالْفَجْرِ

    2. وَلَيَالٍ عَشْرٍ

    3. وَالشَّفْعِ وَالْوَتْرِ

    4. وَاللَّيْلِ إِذَا يَسْرِ

    5. هَلْ فِي ذَٰلِكَ قَسَمٌ لِذِي حِجْرٍ

    6. أَلَمْ تَرَ كَيْفَ فَعَلَ رَبُّكَ بِعَادٍ

    lang=”ar”7. إِرَمَ ذَاتِ الْعِمَادِ

    8. الَّتِي لَمْ يُخْلَقْ مِثْلُهَا فِي الْبِلَادِ

    9. وَثَمُودَ الَّذِينَ جَابُوا الصَّخْرَ بِالْوَادِ

    10. وَفِرْعَوْنَ ذِي الْأَوْتَادِ

    11. الَّذِينَ طَغَوْا فِي الْبِلَادِ

    12. فَأَكْثَرُوا فِيهَا الْفَسَادَ

    13. فَصَبَّ عَلَيْهِمْ رَبُّكَ سَوْطَ عَذَابٍ

    14. إِنَّ رَبَّكَ لَبِالْمِرْصَادِ

    15. فَأَمَّا الْإِنْسَانُ إِذَا مَا ابْتَلَاهُ رَبُّهُ فَأَكْرَمَهُ وَنَعَّمَهُ فَيَقُولُ رَبِّي أَكْرَمَنِ

    16. وَأَمَّا إِذَا مَا ابْتَلَاهُ فَقَدَرَ عَلَيْهِ رِزْقَهُ فَيَقُولُ رَبِّي أَهَانَنِ

    17. كَلَّا ۖ بَلْ لَا تُكْرِمُونَ الْيَتِيمَ

    18. وَلَا تَحَاضُّونَ عَلَىٰ طَعَامِ الْمِسْكِينِ

    19. وَتَأْكُلُونَ التُّرَاثَ أَكْلًا لَمًّا

    20. وَتُحِبُّونَ الْمَالَ حُبًّا جَمًّا

    21. كَلَّا إِذَا دُكَّتِ الْأَرْضُ دَكًّا دَكًّا

    22. وَجَاءَ رَبُّكَ وَالْمَلَكُ صَفًّا صَفًّا

    23. وَجِيءَ يَوْمَئِذٍ بِجَهَنَّمَ ۚ يَوْمَئِذٍ يَتَذَكَّرُ الْإِنْسَانُ وَأَنَّىٰ لَهُ الذِّكْرَىٰ

    24. يَقُولُ يَا لَيْتَنِي قَدَّمْتُ لِحَيَاتِي

    25. فَيَوْمَئِذٍ لَا يُعَذِّبُ عَذَابَهُ أَحَدٌ

    26. وَلَا يُوثِقُ وَثَاقَهُ أَحَدٌ

    27. يَا أَيَّتُهَا النَّفْسُ الْمُطْمَئِنَّةُ

    28. ارْجِعِي إِلَىٰ رَبِّكِ رَاضِيَةً مَرْضِيَّةً

    29. فَادْخُلِي فِي عِبَادِي

    30. وَادْخُلِي جَنَّتِي

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